Saturday, March 15, 2025

बुंदेली लोक संस्कृति को जन-जन तक पहुचा रहे है जी.एस. रंजन

रिपोर्ट – राजेन्द्र सिंह 

झांसी। ” बुंदेली झलक” के संस्थापक- निदेशक जी.एस.रंजन बुंदेलखंड की लोक कला संस्कृति और साहित्य के संरक्षण संवर्धन के साथ-साथ बुंदेलखंड की लोक कला संस्कृति और साहित्य को विश्व पटल पर ले जाने और जनमानस से बुंदेलखंड की लोक कला संस्कृति से परिचय कराने के लिए अपनी वेबसाईट bundeliijhalak.com के माध्यम से देश- विदेश मे बुंदेली संस्कृति को जन-जन तक पहुचाने मे महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

जी.एस.रंजन का मानना है कि प्रत्येक देश की कला, सांस्कृति और उसका इतिहास उसकी पहचान होती है। भारत के हर प्रदेश में कला और सांस्कृति की अपनी एक विशेष शैली और पद्धति है जिसे लोक कला के नाम से जाना जाता है। लोककला के अलावा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप है जो गांव देहात के लोगों में प्रचलित है। जिसे गवंई या जनजातीय कला कह सकते है। भारत की लोक कलाएं बहुत ही पारम्परिक और साधारण होने पर भी इतनी अधिक सजीव और प्रभावशाली हैं । इसमे स्थिति और अवस्था के साथ- साथ अनेको प्रयोग होते रहते है जिसके परिणाम स्वरूप समय -समय पर कला और संस्कृति पर हल्के फुल्के बदलाव आते रहते है पर वे कभी अपनी जडें नही छोडते, किंतु प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण हमारी अनेक पारम्परिक कला और संस्कृति विलुप्त हो चुकी है और कुछ विलुप्त होने की कगार पर है। ऐसी स्थिति मे विलुप्त होती हमारी लोक पारम्परा और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन करना सरकार का ही नहीं अपितु समाज की भी जिम्मेदारी होती है।

बुंदेलखंड में बुंदेलखंडी विश्वकोश निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है जिसमें जी.एस.रंजन एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। बुंदेलखंडी विश्वकोष निर्माण एक ऐसा प्रयास है जिससे बुंदेलखंड की कला, संस्कृति और साहित्य से जुडे बुनियादी मूल्यों एवं अवधारणाओं को जन मानस में जीवंत रखा जा सके।

2 मई 1969 को जन्मे जी.एस. रंजन ने बुन्देली संस्कृति को देखने और परखने की शुरुआत 9 साल की उम्र मे गुरसरायं के पास एक छोटे से गांव बिजौरा (झांसी) से की‌। इनके पिता श्री सुखलाल पशु चिकित्सक थे जिसके कारण उनकी पोस्टिंग ज़्यादातर गांव मे होती थी।

इस लिये उन्हे ग्रामीण परिवेश मे रह कर वहां की संस्कृति वहां के परवेश को जानने का अवसर प्राप्त हुआ‌‌। उसके पश्चात दद्दा (राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त )एवं ओरछा राज्य के राजकवि मुंशी अजमेरी की नगरी साहित्य भूमि चिरगांव (झांसी) आ गये जहां कला, संस्कृति और साहित्य की मिट्टी मे फलने – फूलने का भरपूर अवसर मिला।

चिरगांव मे रहकर पढाई के साथ साथ सहित्य को जानने का अवसर मिला और यहीं से उनका रुझान रंगमंच की ओर बढा और दिल्ली की ओर कदम बढ गये। दिल्ली मे श्रीराम सेंटर फार आर्ट एंड कल्चर से एक साल का रंगमंच और अभिनय का प्रशिक्षण लिया और फिर भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ से रंगमंच विधा का प्रशिक्षण लिया फिर 1995 मे भारत सरकार के सूचना एवं प्रासारण मंत्रालय के गीत एवं नाटक प्रभाग मे बतौर अभिनेता 3 साल तक काम करते रहे फिर नौकरी छोडकर दिल्ली सरकार के साहित्य कला परिषद रंगमंडल मे चले गये। यहां 3 साल रहे और देश के जाने-माने कई निर्देशको के साथ अनेक नाटक मे अभिनय किया।

जी.एस.रंजन विशेष रूप में अभिनेता ,निर्देशक और लेखक के रूप में विख्यात है। आपने लगभग 60 से अधिक नाटकों में अभिनय और 30 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है, जिसका मंचन देश के भिन्न-भिन्न स्थानों पर 200 से अधिक बार हो चुका है।

जी.एस.रंजन ने देश के लगभग 50 से अधिक रंग जगत के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ कार्य किया है जिनमें – पद्मविभूषण हबीब तनवीर, प्रो.बी.एम.शाह, सुश्री अमाल अलाना, प्रो. देवेंद्र राज अंकुर, बादल सरकार, वागीश कुमार सिंह, प्रो.हेमा सिंह, उर्मिल कुमार थपलियाल, जे.पी.सिंह, अवतार साहनी, श्रीमती चित्रा सिंह, सुश्री चित्रा मोहन, श्री सुरेश शर्मा, श्री प्रवीर गुहा, निरंजन गोस्वामी आदि प्रमुख है।

जी.एस.रंजन ने अपने करियर की शुरुआत सॉन्ग एंड ड्रामा डिवीज़न (Govt.Of India) से की और बतौर अभिनेता काम किया और फिर साहित्य कला परिषद रिपर्टरी कंपनी (दिल्ली सरकार) मे बतौर अभिनेता काम किया।

फिर 2000 मे दिल्ली से मुम्बई चले गये। मुम्बई मे कई साल तक बतौर सह निर्देशक कई जाने-माने फिल्म, टी वी निर्देशकों के साथ काम किया और 2009 से बतौर निर्देशक टी वी सीरियल का निर्देशन कर रहे हैं। अभी तक हिंदी, भोजपुरी मे कई सीरियल सोनी टीवी, ज़ी टीवी,स्टार प्लस,ज़ी पुरवईया,अंजन टीवी, महुआ टीवी, ज़ी गंगा, दूरदर्शन आदि के लिये 2000 से अधिक एपीसोड निर्देशित कर चुके हैं।

 

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