सांस्कृतिक एवं लोक परंपराओं के लिए बुंदेलखंड अपनी पहचान रखता है यहां की माटी की सुगंध वातावरण में समाई हुई है बुंदेलखंड की लोक परंपराओं लोक संस्कृति में लोक बाध्यों की अहम भूमिका है। यहाँ के बारहमासी गीतों में अलग-अलग विधा के गीत हैं और उनके साथ संगत के लिए वाद्य यंत्र निर्धारित है इन्हीं वाद्य यंत्रों को लेकर संगीत गुरुकुल दतिया मध्य प्रदेश ने लोक वाद्य कचहरी की संरचना की ।

जानिए बुन्देलखण्ड की लोककला और संस्कृति के बारे में
सुप्रसिद्ध कला और साहित्य के अध्येता स्व पंडित महेश मिश्र मधुकर ने लोक वाद्य कचहरी की सर्वप्रथम प्रस्तुति की थी तव से इसकी एक पहचान बन गई है संगीत गुरुकुल दतिया की प्रस्तुति बुंदेलखंड मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अनेकों प्रतिष्ठित मंचों पर की जा चुकी है वर्तमान में इसका संचालन एवं निर्देशन संगीतज्ञ एवं लोक संस्कृति विशेषज्ञ विनोद मिश्र कर रहे हैं।
हाल ही उत्तर प्रदेश के कानपुर में आयोजित माटी के रंग तथा ग्वालियर के वर्ष प्रतिपदा संबत्सर आयोजन में इसकी प्रस्तुति की गई जिसमें लगभग 30 लोक वाद्य समूह को सम्मिलित किया गया लोक वाद्य कचहरी में मृदंग, पखावज, कसावरी, मजीरा, झिन्का, ढपला, ढप, डमरु, टेसू राजा, तुरही, नागफनी, सतरंगी, चट, कन्ना, नगरिया, ढोलक, ढोल, ताशा, रमतूला, चंग, ढपली, लोटा, संगीत चिड़िया, विजय घंट, बड़ी झांझ, पापिरा बांसुरी, बंसी आदि वाद्य यंत्र को प्रस्तुत किया गया।
इस आयोजन में जिन कलाकारों ने भाग लिया उनमें मनोज मिश्रा, विनोद मिश्रा, नारायण सिंह कुशवाह, हरनाम सिंह कुशवाह, बलदेव सिंह, पर्वत सिंह, किशन सिंह, राजू कुशवाहा, राहुल बंशकार, मथुरा वंशकार, दुर्ग सिंह कुशवाह, मिलिंद मिश्रा, मोहित काकोरिया, अफजल हुसैन, ऋतुराज सेन, भगवानदास कुशवाह, संतोष अहिरवार, मिठाई लाल, हरिदास बाबा, बादशाह दांगी, राजेंद्र वंशाकार आदि कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां दी।
उक्त दुर्लभ लोक वाद्य संगीत गुरुकुल एवं कला शोध संस्थान के संरक्षण में हैं इस संस्थान के संचालक विनोद मिश्र का कहना है कि हम बुंदेलखंड के लगभग 150 वाद्य यंत्रों को लोक वाद्य कचहरी में सम्मिलित कर प्रस्तुत करना चाहते हैं।